Monday, December 24, 2012

सजनी- एक प्रेम गीत

क्या देख रही हो सजनी,
कि प्रेम कितना गहरा है मेरा ।
क्या मन में चल रहा है सजनी,
कि प्रेम कितना गहरा है मेरा ।
क्या दिल में बसा है सजनी,
कि प्रेम कितना गहरा है मेरा ।

जब तुम्हारी आखों में आँखें डालकर देखता हूं, सजनी,
सागर की सारी लहरें आरपार हो जाती हैं ।
जब तुम्हारे चिबुक को एकटक देखता हूं, सजनी,
जीवन के सारे रसों का आनंद भर आता है ।
जब तुम्हारे केशों को देखता हूं, सजनी,
उन की छाया में मन इंद्रजीत हो जाता है ।
प्यार ही प्यार भरा है तुम्हारे उरोजों में, सजनी,
उनके तले जीवन में निश्चिंत भाव से सुःखनिद्रा में,
सो जाने को मन करता है ।
हर पल जीवंतता का एहसास तुम्हारे ख्याल से बना रहता है, सजनी ।
सजनी, मेरी सजनी, क्या मेरे मन की बात तुम तक पहुंच रही है ।

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