Sunday, December 02, 2012

तंग इंसान की खुली खिड़की से दिखता आसमान

मन भी विचित्र है । जहाँ तरह तरह के रंग दिखाई देते हैं तो काले रंग की खूबसूरती का बखान करने लगता है । जब काले रंग से रूबरू होता है तो सफेद रंग के साये तले अपने वजूद की दलील देने लगता है । और जब सफेद रंग के साये मे झलकता है तब उसे रंगों की तलब हो उठती है । क्या करें इस मन का । कोई इसे भी समझे । क्यों हम पानी भरे गुब्बारे की तरह हाथों से सरकना चाहते हैं और ये भी लगता है कि कहीं से पकड़ ढीली ना हो जाए क्योंकि जमीन पर गिरते ही मालूम है कि क्या हाल होने वाला है । इस पानी के गुब्बारे सा मन का नाजुकपन क्या कहना चाहता है । हमें क्या चाहिए ? हमें ऐसे दो हाथ चाहिए जो साथ जुड़कर दोने (टोकरी ) की तरह हों और जिसमें मन का गुब्बारा हिलता डुलता रहे बेफिकर । इतनी सुरक्षा भरे हाथ कहाँ मिलें । और जो जीवन के बोध में ही अबोधता का भाव डाल दें । इस हद तक डाल दें इसके वजूद की एहसास सिर्फ उसके हिलने डुलने मे ही रहे ना कि गुब्बारे बने रहने में । ये सारी बातें एक उदारणार्थ नहीं कही जा रही हैं । जीवन का निरंतर बहते रहना उसके स्त्रोत की ओर ध्यान खींचता है औऱ फिर उसके अंत की ओर । ये आरंभ और अंत का साम्यक बोध वर्तमान के संघर्षों को भी जटिल बना देता है । मानव जीवन ऐसे मे क्या ढूंढता है एक ऐसी संजीवनी बूटी जो उसके इस कष्ट को हर ले । क्या वाकई कोई ऐसी बूटी है । मेरा बार बार सहज उत्तर होता है यदि प्रेम की ताकत भी इस चुनौती को नहीं ले सकती है तो जीवन में और क्या है । लगता है प्रेम का पलड़ा पहली बार हलका पड़ने लगा है । तो क्या इसका उत्तर मोक्षदायी वो सभी बातें जो धर्म पुराणों में लिखी गई हैं । क्या है इस पहली का हल । या सिर्फ मृत्युबोध के साथ शुतुर्मुर्ग की तरह हम सब जाने का इंतजार कर रहे हैं । अरे नहीं ये तो बहुत बड़ी त्रासदी होगी मानव जीवन के साथ जो ब्रह्मांड में जीवन और चेतना का सिर्फ एक मात्र साक्षी है । ये श्रेय तो हम तो बाकि प्रकृति को भी नहीं दे सकते । तो फिर क्या है जो जीवन में जीवन का आधार है वरना तो कबीर की धोकनी से ज्यादा हम कुछ भी नहीं है । कमल की पत्तियाँ बंद होने लगती हैं और भँवरा उसमें सो जाता है । ऐसा लगता है कि जीवन के नियम में नियति भी निहित होती है । तो फिर क्या किया जा सकता है, एक मौलिक परिवर्तन की जरूरत है । जिस चीज से सबसे ज्यादा खुशी मिलती है, और जो सबसे सामयिक खुशी का कारण है उसे उस समय का नियम बना लो । बस उसे आदत बना डालो । उसे रोज करो बार बार करो । पूरी निर्भीकता से साथ करो । और इतना करो कि खुशी के आंसू मन मे छलक आएं । आपको मेरा प्यार !

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