Tuesday, February 14, 2012

वेलनटाईन डे

तकलीफ से भरा मन एक ढहते ताश के महल की तरह है । हर बार बमुश्किल से सर उठाकर देखने को मन करता है, और हर बार ताश के ढहते महल के एहसास के साथ झुक जाता है । इस टूटन का क्या जवाब दें । जो सबसे सीधा और सहज लगता था, वही छलावे का पर्यायी बन गया है । एक चारित्रिक भूख मानव मन की प्रवृत्ति होती है । ऐसा टिकाव जिसके साथ मन जीना सीख लेता है । इस दुनिया के बाजार में जहाँ तरह तरह के इंसानों से पाला पड़ता है, वहाँ इस तरह की छीजन हो जाती है कि मन एकदम भूख से बिलबिला जाता है । यह भूख जो कि अपने मन को सहज रखने की चाहत से जुड़ी है । वह भूख सिर्फ जीवनसाथी के साथ ही शांत होती है । इसका क्या कारण है ? वह इसलिए कि सहवास के उत्तरार्ध में जो निश्छल मन में दोलन होता है, वह मोक्षदायी होता है । इसलिए इससे भावनाओं का पोषण होता चला जाता है । इस पोषण से ही मन सबल होता है, तथा बाहरी दुनियाँ के छीजन को झेलने की क्षमता भी बनती है ।
मानव का सबसे बड़ा दुर्भाग्य तब है जब उसका जीवन साथी ही छीजन का स्त्रोत बन जाता है । तब जो क्षति जीवन में होती है उसका अंदाजा लगाना ही मुश्किल है । अनेक दुर्बलताओं को निमंत्रण मिलजाता है । और यदि मानव मुमुक्षु भी हो जाए तो गलत नहीं । ऐसा दुर्भाग्य आखिर क्यों । इस जीवन की गति सभी को पता है । मृत्यु का ही एक रास्ता है फिर भी जीवन के इस दयनीय पक्ष की हत्या क्यों ? आज के दिन इस दुर्भाग्य को देखता हूँ तो मन कुम्हलाकर मृतप्राय होने लगता है ।