जीवन के अनेक विचित्र पङाव आते हैं । मेरा वर्तमान समय भी कुछ ऐसी स्थितियों का सामना कर रहा है । शून्यता की आदत कठिन होती है, पर मैने उसका अभ्यास प्रारंभ कर दिया था । तब जैसे मानसूनी पवनों के अंधङ की तरह एक ऐसे इंसान का व्यक्तित्व मेरे जीवन में प्रवेश कर गया, जिसका स्वरूप मेरे अंतरमन में इस प्रकार घुल गया, जैसे कि चीनी पानी में घुल जाती है । उसका प्रभाव के रूप में व्याख्या करना भी बेमानी होगा, क्योंकि प्रभाव तो तब पङता है, जब आप स्वयं से भिन्नता की ओर आकर्षित होते हो । वह तो बस इस तरह का दर्शन था कि निद्रा में कोई स्वप्न देख रहा हो और अचानक से वह चेतन अवस्था में अपने आप को वहाँ पाए, जहाँ वह जाने को बेबस था, परंतु सदैव डरता रहता था । तब एक दिन वह स्वयं ही परिस्थिति के बहाव से वहाँ पहुँच गया । कुछ ऐसा ही मेरे जीवन में घटित हुआ, उस दिलदार इंसान के आने से ।
यहाँ उन रंगों उमंगों की चर्चा में भी दम नहीं है, जो कि अकसर ऐसे मौकों पर ख्यालों के बवंडर में दौङी चली आती हैं । यहाँ तो बस सिर्फ आनंद ही आनंद है । उसके होने से बस मन में होने से जो आनंद होता है । मन सिर्फ कल्पना से ही अपने अस्तित्व का बोध करने लगता है । वास्तविकता उसके सामने क्षीण होती है, पर उस पर आशा निराशा का बोध नहीं टिका होता है । वह तो सिर्फ इस पर टिका हुआ होता है कि अब तक तुम्हारा ख्याल मेरे मन में क्यों नहीं आया । और फिर यही एक जीवन में प्रण कि अब न जाने दूँगा, तुम्हारे ख्याल को इस जीवन में से, चाहे तुम मिलो न मिलो । ऐसी भक्ति यदि इंसान इंसान की करने लगे, तब कहना होगा कि मुझे तुझमें रब दिखता है, यारा मैं क्या करूँ ।
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